धरा वारि ने जल दुर्दशा का ये दुर्दिन है क्यों देखा
ये मानव के कर्मो का फल है न है नियति का लेखा
जल ही जीवन है। अगला विश्वयुद्व पानी के लिए होगा। जैसे जुमले पढ़ते पढ़ते हम उब चुके है। अब जल से संबंधित सामान्य ज्ञान दिखाने का समय निकल चुका है। कुछ जरूरी जानकारी इकठठा कीजिए एवं अपने पक्ष की कार्यवाही कर दीजिए। साहित्यकारों को भी जल प्रबंधन एवं जल संरक्षण पर जागरूक योगदान देना होगा। लेखनी की जागरूकता के द्वारा संवेदनशीलता फैलानी होगी और प्रयास करना होगा कि जल प्रबंधन एवं जल संरक्षण सिर्फ लिखने के अच्छे विषय मात्र नही है। भारत में जल का मात्र 15 प्रतिशत ही उपयोग होता है शेष जल बहकर व्यर्थ चला जाता है। 25 मिमी से कम बारिश वाला इजराइल जल की एक भी बूॅद व्यर्थ नही बहने देता है। भारतीय संविधान की धारा 51.एच में वर्णित मौलिक कत्तर्व्यों में भारतीय नागरिकों से यह अपेक्षा की गयी है कि वे वैज्ञानिक मिजाज और खोज.पड़ताल की भावना का विकास करेंगे! सवाल यह है कि क्या हमारे शासक भारतीय नागरिक नहीं है! अगर हैं तो क्या धारा 51.एच उन पर लागू नहीं होतीघ् सच तो यह है कि शासक होने के नाते उनसे तो संविधान की भावना के अनुरूप चलने की अपेक्षा आम नागरिकों से भी ज्यादा है? फ़िर संविधान की यह धारा भी कहती है कि यह कत्तर्व्य केवल नागरिकों तक सीमित नहीं हैं बल्कि राज्य को भी इनका पालन करना है लेकिन क्या ऐसा हो रहा है!पिछले कुछ सालों के दौरान जिस तरह से कुछ राज्य सरकारों ने जल प्रबंधन व संरक्षण के वैज्ञानिक तरीकों को दरकिनार कर जल देवता वरूण का प्रसन्न करने के लिए धार्मिक अनुष्ठानों का सहारा लिया उससे तो उनकी जचाबदेही सवाल का जवाब नकारात्मक ही मिलता है रूठे मानसून को मनाने के लिए मध्यप्रदेश सरकारसें द्वारा प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर सोम यज्ञों का आयोजन काफ़ी चर्चा में रहा है इसके लिए महाराष्ट्र के शोलापुर स्थित श्री योगीराज वेद विज्ञान आश्रम की मदद ली गयी इन आयोजनों के लिए के तहत लाखों रुपये की वित्तीय सहायता भी प्रदान की इन सोम यज्ञों का नतीजा क्या निकलाघ् आश्रम ने दावा किया कि पिछले कई वर्षो से सूखे का सामना कर रहे मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में 2008 में हुई बारिश इन्हीं सोम यज्ञों का परिणाम थीण् यह तो एक तथ्य है कि उस साल बुंदेलखंड में अच्छी बारिश हुई थीए लेकिन अगर यह केवल सोम यज्ञों का ही नतीजा होती तो कम से कम उन सभी स्थलों पर तो सामान्य या सामान्य से बेहतर बारिश होनी चाहिए थीए जहां ये संपन्न करवाये गये थेलेकिन भोपाल स्थित क्षेत्रीय मौसम केंद्र के आंकड़े बताते हैं कि जिन दस स्थलों पर सोम यज्ञों का आयोजन किया गया उनमें से सात में बारिश सामान्य तो क्या सामान्य से भी कम हुई! इससे यही साफ़ होता है कि बारिश का यज्ञों से कोई लेना.देना नहीं है! अगर बुंदेलखंड में अच्छी बारिश हुई तो यह एक सुखद संयोग ही था! वैसा ही जैसा कि देश के कई क्षेत्रों में होता आया है! यदि सोम यज्ञ इतने ही कारगर होते तो बुंदेलखंड के लिए विशेष पैकेज और विशेष दर्जे की जरूरत क्या थीं क्यों न इस क्षेत्र के विभिन्न स्थलों पर सोम यज्ञ करवाकर ही बारिश बुलवा ली जाती! बारिश की कमी की वजह से ही यह क्षेत्र लगातार पिछड़ता गया है और इसलिए इसके पिछड़ेपन को दूर करने के लिए हाल ही में केंद्र ने 7277 करोड़ रुपये के विशेष पैकेज को मंजूरी दी हैण् ऐसा भी नहीं है कि वरूण देवता को मनाने की धार्मिक कवायदें सिर्फ़ मध्य प्रदेश की सरकार ने ही की होण् आंध्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाइएस राजशेखर रेड्डी ने पिछले साल ;2009 मेंद्ध 2 से 4 जुलाई के बीच सरकारी खर्च पर तीन दिवसीय ष्वरूण यज्ञमष् का आयोजन करवाया था! इसका उद्देश्य प्रदेश में अच्छी बारिश के लिए भगवान वेंकटेश्वर को प्रसन्न करना था! वैश्विवक तापमान में बढ़ोतरी के साथ पिछले कुछ दशकों के दौरान बारिश के पैटर्न में भारी बदलाव आया है! ऐसा नही है कि औसत बारिश में कोई विशेष गिरावट आयी है! लेकिन वर्षा के दिनों में जरूर कमी हुई है! अब कुछ ही घंटों में मूसलाधार बारिश हो जाती है! जिससे आंकड़ों में तो वर्षा सामान्य नजर आती है! लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है! और इसी वजह से पानी का संकट लगातार गहराता गया है! सवाल यह है कि हमारी सरकारें जलवायु परिवर्तन की इस चुनौती से निपटने के लिए कितनी तैयार हैं! यह एक वृहद समस्या है और इसका समाधान अकेले मध्यप्रदेश या आंध्रप्रदेश सरकारों के बस के बाहर ही होगा यह सही है कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आज उठाये गये कदम लगभग एक दशक बाद अपना सकारात्मक प्रभाव दिखायेंगे! लेकिन अभी तो शुरुआत करनी ही पड़ेगी! हम सबसे पहले अपनी जीवनशैली बदलें और अधिक से अधिक पेड़ लगाएं! जिससे ईंधन के लिए उनके बीज पत्ते तने काम आयेंगे और हम धरती के अंदर के कार्बन को वहीं रखकर वातावरण को बचा सकेंगे! अंतरराष्ट्रीय कृषि अनुसंधान कंसलटेटिव ग्रुप के अनुसार वर्ष 2050 तक भारत में सूखे के कारण गेहूं के उत्पादन में 50 प्रतिशत तक की कमी आयेगी! दरअसलए वातावरण में औद्योगिक काल में पहले की तुलना में कार्बन डाइऑक्साइड का संकेंद्रण 30 प्रतिशत ज्यादा हुआ है! इससे गर्मी व असहनीय लू से खड़ी चट्टानों के गिरने की घटनाएं बढ़ेंगी! बहुत ज्यादा ठंडए बहुत ज्यादा गर्मी के कारण तनाव या हाईपोथर्मिया जैसी बीमारियां होंगी और दिल तथा श्वास संबंधी बीमारियों से होनेवाली मौतों की संख्या भी बढ़ेगी! क्रिश्चियन एड नामक संस्था की रिपोर्ट कहती है कि मौसम के बदलाव के कारण आगामी दिनों में आजीविका के संसाधनों यानी पानी की कमी और फ़सलों की बर्बादी के चलते दुनिया के अनेक भागों में स्थानीय स्तर पर जंग छिड़ने से सन् 2050 तक एक अरब निर्धन लोग अपना घर.बार छोड़ शरणार्थी के रूप में रहने को विवश होंगे! यूएन की रिपोर्ट के अनुसार 2080 तक 32 अरब लोग पानी की तंगी से और तटीय इलाकों के 60 लाख लोग बाढ़ से जूङोंगेण् कोलंबिया यूनीवर्सिटी के वैज्ञानिक स्टीफ़न मोर्स के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव मलेरियाए फ्लू ओद बीमारियों के वितरण और संचरण में प्रभाव लाने वाला साबित होगा! पहाड़ों पर ठंड के बावजूद मलेरिया फ़ैलेगा! लेकिन मौसम के पैटर्न में आये बदलावों से स्थानीय स्तर पर निपटा जा सकता हैए बशर्ते कि हमारे कर्णधार सोम यज्ञ या वरूण यज्ञ जैसे बेमतलब के अनुष्ठानों पर समय और पैसा बर्बाद ने करेंण् इसके लिए सरकारों को वैज्ञानिक तरीकों से जल प्रबंधन करना होगाए व्यापक नीतियां बनानी होंगी और उन पर अमल भी करवाना होगा! कई राज्यों में घरों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य करने का नियम पारित हो चुका है! लेकिन इस पर क्रियान्वयन कितना हो पाता है! सरकार को यदि प्राचीन परंपराओं से इतना ही अनुराग है तो वह जल प्रबंधन के पुराने तरीकों का अनुसरण कर सकती है! जो विज्ञान सम्मत हैं और कारगर भी साबित होंगे!इसके लिए किसी आश्रम के योगियों के पास जाने की जरूरत भी नहीं होगी! जल प्रबंधन के कार्य में लगे अनुपम मिश्र और राजेंद्र सिंह जैसे योगियों से सीखा जा सकता है कि सदियों पहले लोग कैसे पानी को सहेजकर रखते थे! इस तरह के यज्ञों में सरकार के शामिल होने का सबसे बड़ा खतरा यह है कि आम जनता भी पानी के लिए इसी तरह के यज्ञों व अनुष्ठानों पर और भी ज्यादा भरोसा करने लगती है !सरकार के स्तर पर क्या यह बेहतर नहीं होगा कि जल प्रबंधन के लिए वे ऐसी मिसालें पेश करें और कार्यक्रम चलाएं कि लोग कल के लिए आज से ही पानी को बचाकर चलेंए इतना पानी बचाएं कि कम से कम एक विफ़ल मानसून को हम ङोल सकें! यज्ञों का धार्मिक महत्व एक अलग मुद्दा है लेकिन अच्छा होगा कि इसे व्यक्तिगत आस्था तक ही सीमित रहने दिया जाये और सरकार ऐसे अनुष्ठानों से दूर रहकर जल संरक्षण के जमीनी कार्यो पर ध्यान केंद्रित करे सरकारों का काम जल प्रबंधन की ऐसी दीर्घकालीन नीतियां बनाना होना चाहिए जिनसे आने वाले सालों में न केवल बारिश की कमी बल्कि बारिश के पैटर्न में बदलाव से पैदा होने वाली समस्याओं से कारगर ढंग से निपटा जा सकेण! जल प्रबंधन के पहले कदम के रूप में सार्वजनिक जल वितरण व्यवस्था को दुरूस्त करना सबसे ज्यादा जरूरी है ! जल वितरण के दौरान ही पानी की कितनी बर्बादी होती है! इसके लिए दिल्ली का उदाहरण काफ़ी होगाण् एक अधिकृत रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली को जितना पानी मिलता हैए उसका कम से कम 40फ़ीसदी हिस्सा रिसाव में बर्बाद हो जाता है अन्य शहरों में स्थिति इससे बेहतर तो शायद होगी लेकिन इस बर्बादी को रोकने के लिए तो कुछ नहीं किया जाता उल्टे दूर बहती नदियों से शहरों में पानी लाने की योजनाओं पर अरबों रुपये खर्च कर दिये जाते हैं और जब नदियां भी सूखने लगती हैं तो भगवान का ही आसरा रह जाता है ! जल प्रबंधन के लिए किसी भी सरकार ने कुछ नहीं किया है इसलिए हर साल की तरह इस बार भी देश के अनेक शहरो में पानी को लेकर पहले जैसा ही हाहाकार मचेगा।
ये मानव के कर्मो का फल है न है नियति का लेखा
जल ही जीवन है। अगला विश्वयुद्व पानी के लिए होगा। जैसे जुमले पढ़ते पढ़ते हम उब चुके है। अब जल से संबंधित सामान्य ज्ञान दिखाने का समय निकल चुका है। कुछ जरूरी जानकारी इकठठा कीजिए एवं अपने पक्ष की कार्यवाही कर दीजिए। साहित्यकारों को भी जल प्रबंधन एवं जल संरक्षण पर जागरूक योगदान देना होगा। लेखनी की जागरूकता के द्वारा संवेदनशीलता फैलानी होगी और प्रयास करना होगा कि जल प्रबंधन एवं जल संरक्षण सिर्फ लिखने के अच्छे विषय मात्र नही है। भारत में जल का मात्र 15 प्रतिशत ही उपयोग होता है शेष जल बहकर व्यर्थ चला जाता है। 25 मिमी से कम बारिश वाला इजराइल जल की एक भी बूॅद व्यर्थ नही बहने देता है। भारतीय संविधान की धारा 51.एच में वर्णित मौलिक कत्तर्व्यों में भारतीय नागरिकों से यह अपेक्षा की गयी है कि वे वैज्ञानिक मिजाज और खोज.पड़ताल की भावना का विकास करेंगे! सवाल यह है कि क्या हमारे शासक भारतीय नागरिक नहीं है! अगर हैं तो क्या धारा 51.एच उन पर लागू नहीं होतीघ् सच तो यह है कि शासक होने के नाते उनसे तो संविधान की भावना के अनुरूप चलने की अपेक्षा आम नागरिकों से भी ज्यादा है? फ़िर संविधान की यह धारा भी कहती है कि यह कत्तर्व्य केवल नागरिकों तक सीमित नहीं हैं बल्कि राज्य को भी इनका पालन करना है लेकिन क्या ऐसा हो रहा है!पिछले कुछ सालों के दौरान जिस तरह से कुछ राज्य सरकारों ने जल प्रबंधन व संरक्षण के वैज्ञानिक तरीकों को दरकिनार कर जल देवता वरूण का प्रसन्न करने के लिए धार्मिक अनुष्ठानों का सहारा लिया उससे तो उनकी जचाबदेही सवाल का जवाब नकारात्मक ही मिलता है रूठे मानसून को मनाने के लिए मध्यप्रदेश सरकारसें द्वारा प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर सोम यज्ञों का आयोजन काफ़ी चर्चा में रहा है इसके लिए महाराष्ट्र के शोलापुर स्थित श्री योगीराज वेद विज्ञान आश्रम की मदद ली गयी इन आयोजनों के लिए के तहत लाखों रुपये की वित्तीय सहायता भी प्रदान की इन सोम यज्ञों का नतीजा क्या निकलाघ् आश्रम ने दावा किया कि पिछले कई वर्षो से सूखे का सामना कर रहे मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में 2008 में हुई बारिश इन्हीं सोम यज्ञों का परिणाम थीण् यह तो एक तथ्य है कि उस साल बुंदेलखंड में अच्छी बारिश हुई थीए लेकिन अगर यह केवल सोम यज्ञों का ही नतीजा होती तो कम से कम उन सभी स्थलों पर तो सामान्य या सामान्य से बेहतर बारिश होनी चाहिए थीए जहां ये संपन्न करवाये गये थेलेकिन भोपाल स्थित क्षेत्रीय मौसम केंद्र के आंकड़े बताते हैं कि जिन दस स्थलों पर सोम यज्ञों का आयोजन किया गया उनमें से सात में बारिश सामान्य तो क्या सामान्य से भी कम हुई! इससे यही साफ़ होता है कि बारिश का यज्ञों से कोई लेना.देना नहीं है! अगर बुंदेलखंड में अच्छी बारिश हुई तो यह एक सुखद संयोग ही था! वैसा ही जैसा कि देश के कई क्षेत्रों में होता आया है! यदि सोम यज्ञ इतने ही कारगर होते तो बुंदेलखंड के लिए विशेष पैकेज और विशेष दर्जे की जरूरत क्या थीं क्यों न इस क्षेत्र के विभिन्न स्थलों पर सोम यज्ञ करवाकर ही बारिश बुलवा ली जाती! बारिश की कमी की वजह से ही यह क्षेत्र लगातार पिछड़ता गया है और इसलिए इसके पिछड़ेपन को दूर करने के लिए हाल ही में केंद्र ने 7277 करोड़ रुपये के विशेष पैकेज को मंजूरी दी हैण् ऐसा भी नहीं है कि वरूण देवता को मनाने की धार्मिक कवायदें सिर्फ़ मध्य प्रदेश की सरकार ने ही की होण् आंध्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाइएस राजशेखर रेड्डी ने पिछले साल ;2009 मेंद्ध 2 से 4 जुलाई के बीच सरकारी खर्च पर तीन दिवसीय ष्वरूण यज्ञमष् का आयोजन करवाया था! इसका उद्देश्य प्रदेश में अच्छी बारिश के लिए भगवान वेंकटेश्वर को प्रसन्न करना था! वैश्विवक तापमान में बढ़ोतरी के साथ पिछले कुछ दशकों के दौरान बारिश के पैटर्न में भारी बदलाव आया है! ऐसा नही है कि औसत बारिश में कोई विशेष गिरावट आयी है! लेकिन वर्षा के दिनों में जरूर कमी हुई है! अब कुछ ही घंटों में मूसलाधार बारिश हो जाती है! जिससे आंकड़ों में तो वर्षा सामान्य नजर आती है! लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है! और इसी वजह से पानी का संकट लगातार गहराता गया है! सवाल यह है कि हमारी सरकारें जलवायु परिवर्तन की इस चुनौती से निपटने के लिए कितनी तैयार हैं! यह एक वृहद समस्या है और इसका समाधान अकेले मध्यप्रदेश या आंध्रप्रदेश सरकारों के बस के बाहर ही होगा यह सही है कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आज उठाये गये कदम लगभग एक दशक बाद अपना सकारात्मक प्रभाव दिखायेंगे! लेकिन अभी तो शुरुआत करनी ही पड़ेगी! हम सबसे पहले अपनी जीवनशैली बदलें और अधिक से अधिक पेड़ लगाएं! जिससे ईंधन के लिए उनके बीज पत्ते तने काम आयेंगे और हम धरती के अंदर के कार्बन को वहीं रखकर वातावरण को बचा सकेंगे! अंतरराष्ट्रीय कृषि अनुसंधान कंसलटेटिव ग्रुप के अनुसार वर्ष 2050 तक भारत में सूखे के कारण गेहूं के उत्पादन में 50 प्रतिशत तक की कमी आयेगी! दरअसलए वातावरण में औद्योगिक काल में पहले की तुलना में कार्बन डाइऑक्साइड का संकेंद्रण 30 प्रतिशत ज्यादा हुआ है! इससे गर्मी व असहनीय लू से खड़ी चट्टानों के गिरने की घटनाएं बढ़ेंगी! बहुत ज्यादा ठंडए बहुत ज्यादा गर्मी के कारण तनाव या हाईपोथर्मिया जैसी बीमारियां होंगी और दिल तथा श्वास संबंधी बीमारियों से होनेवाली मौतों की संख्या भी बढ़ेगी! क्रिश्चियन एड नामक संस्था की रिपोर्ट कहती है कि मौसम के बदलाव के कारण आगामी दिनों में आजीविका के संसाधनों यानी पानी की कमी और फ़सलों की बर्बादी के चलते दुनिया के अनेक भागों में स्थानीय स्तर पर जंग छिड़ने से सन् 2050 तक एक अरब निर्धन लोग अपना घर.बार छोड़ शरणार्थी के रूप में रहने को विवश होंगे! यूएन की रिपोर्ट के अनुसार 2080 तक 32 अरब लोग पानी की तंगी से और तटीय इलाकों के 60 लाख लोग बाढ़ से जूङोंगेण् कोलंबिया यूनीवर्सिटी के वैज्ञानिक स्टीफ़न मोर्स के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव मलेरियाए फ्लू ओद बीमारियों के वितरण और संचरण में प्रभाव लाने वाला साबित होगा! पहाड़ों पर ठंड के बावजूद मलेरिया फ़ैलेगा! लेकिन मौसम के पैटर्न में आये बदलावों से स्थानीय स्तर पर निपटा जा सकता हैए बशर्ते कि हमारे कर्णधार सोम यज्ञ या वरूण यज्ञ जैसे बेमतलब के अनुष्ठानों पर समय और पैसा बर्बाद ने करेंण् इसके लिए सरकारों को वैज्ञानिक तरीकों से जल प्रबंधन करना होगाए व्यापक नीतियां बनानी होंगी और उन पर अमल भी करवाना होगा! कई राज्यों में घरों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य करने का नियम पारित हो चुका है! लेकिन इस पर क्रियान्वयन कितना हो पाता है! सरकार को यदि प्राचीन परंपराओं से इतना ही अनुराग है तो वह जल प्रबंधन के पुराने तरीकों का अनुसरण कर सकती है! जो विज्ञान सम्मत हैं और कारगर भी साबित होंगे!इसके लिए किसी आश्रम के योगियों के पास जाने की जरूरत भी नहीं होगी! जल प्रबंधन के कार्य में लगे अनुपम मिश्र और राजेंद्र सिंह जैसे योगियों से सीखा जा सकता है कि सदियों पहले लोग कैसे पानी को सहेजकर रखते थे! इस तरह के यज्ञों में सरकार के शामिल होने का सबसे बड़ा खतरा यह है कि आम जनता भी पानी के लिए इसी तरह के यज्ञों व अनुष्ठानों पर और भी ज्यादा भरोसा करने लगती है !सरकार के स्तर पर क्या यह बेहतर नहीं होगा कि जल प्रबंधन के लिए वे ऐसी मिसालें पेश करें और कार्यक्रम चलाएं कि लोग कल के लिए आज से ही पानी को बचाकर चलेंए इतना पानी बचाएं कि कम से कम एक विफ़ल मानसून को हम ङोल सकें! यज्ञों का धार्मिक महत्व एक अलग मुद्दा है लेकिन अच्छा होगा कि इसे व्यक्तिगत आस्था तक ही सीमित रहने दिया जाये और सरकार ऐसे अनुष्ठानों से दूर रहकर जल संरक्षण के जमीनी कार्यो पर ध्यान केंद्रित करे सरकारों का काम जल प्रबंधन की ऐसी दीर्घकालीन नीतियां बनाना होना चाहिए जिनसे आने वाले सालों में न केवल बारिश की कमी बल्कि बारिश के पैटर्न में बदलाव से पैदा होने वाली समस्याओं से कारगर ढंग से निपटा जा सकेण! जल प्रबंधन के पहले कदम के रूप में सार्वजनिक जल वितरण व्यवस्था को दुरूस्त करना सबसे ज्यादा जरूरी है ! जल वितरण के दौरान ही पानी की कितनी बर्बादी होती है! इसके लिए दिल्ली का उदाहरण काफ़ी होगाण् एक अधिकृत रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली को जितना पानी मिलता हैए उसका कम से कम 40फ़ीसदी हिस्सा रिसाव में बर्बाद हो जाता है अन्य शहरों में स्थिति इससे बेहतर तो शायद होगी लेकिन इस बर्बादी को रोकने के लिए तो कुछ नहीं किया जाता उल्टे दूर बहती नदियों से शहरों में पानी लाने की योजनाओं पर अरबों रुपये खर्च कर दिये जाते हैं और जब नदियां भी सूखने लगती हैं तो भगवान का ही आसरा रह जाता है ! जल प्रबंधन के लिए किसी भी सरकार ने कुछ नहीं किया है इसलिए हर साल की तरह इस बार भी देश के अनेक शहरो में पानी को लेकर पहले जैसा ही हाहाकार मचेगा।