Friday, March 9, 2012

कितनी सुरक्षित महिलाए.....?


बलात्कार की घटनाओं को लेकर हमारी संवेदनशीलता क्या कुंद हो गई है..? ये सवाल अब पूछे जाने की जरुरत है। देश में एक के बाद एक बलात्कार की खबरें लगातार महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सवालिया निशान लगा रही हैं। उन्हें लेकर पुलिस-प्रशासन और सरकार का रवैया ज्यादा चिंतित कर रहा है। हद तो यह कि बलात्कार जैसे घृणित अपराध का भी राजनीतिकरण किया जा रहा है। समस्या का हल पुलिस सुधारों के जरिए पीड़िता और उसके परिवार को न्याय मिलने का यकीन दिलाना है। इसके लिए अलग से बलात्कार सेल बनाए जाने की जरुरत है,जिसमें अधिकतर महिला पुलिस अधिकारी हों उन्हें बेहतर सुविधाएं और स्टाफ मुहैया कराया जाए। बलात्कार के मुकदमों की सुनवाई के लिए देश भर में फास्ट ट्रैक अदालतें बनाना भी एक अच्छा सुझाव है। बलात्कार पीडिता के प्रति संवेदनशील होना उसे कानून द्वारा प्रदान सुरक्षा दिलाने में अपने आप में काफी मददगार साबित हो सकता है। इसी तरह प्रोटोकोल का उल्लंघन निंदनीय है। नोएडा बलात्कार मामले में पुलिस ने अंजाने अथवा मूर्खता में पीड़ित का नाम प्रेस नोट के जरिए मीडिया को उपलब्ध कराया। सामाजिक दंश से जूझती बलात्कार पीड़ित के लिए वक्त बेरहम होता है और इसी वजह से उसकी पहचान सार्वजनिक नहीं की जाती। लेकिन, पुलिस इस वाक्ये के दौरान घोर असंवेदनशील दिखायी दी। कई मामलों में तो मीडिया का रुख भी सराहनीय नहीं होता। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि बलात्कार जैसे संगीन अपराध पुरुष प्रधान समाज के उन कुंठित लोगों द्वारा किए जाते हैं,जो महिलाओं को महज उपभोग की वस्तु मानते हैं। इस चलन पर रोक के लिए स्कूल-कॉलेजों में लिंग संवेदीकरण कार्यक्रम चलाए जाने की भी आवश्यकता है। इसके अलावा बलात्कार संबंधी मामलों के तेजी से निपटारे पर काम किया जाना जरुरी है। पर जमीनी हकीकत अलग है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूारो के आंकड़े बताते हैं कि देश में रोजाना बलात्कार के 53 से ज्याचदा मामले दर्ज होते हैं। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि यह संख्याक वास्तविक आंकड़े से काफी कम हैं। आंकड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए गंभीर प्रयास किए जाने की जरूरत है। इस प्रकार की घटनाएं नियमित तौर पर हो रही हैं और इसमें हमें कुछ भी नया नहीं दिखता, लिहाजा हमें ये सोचने पर विवश करता है कि क्यां बतौर एक ऐसे देश के नागरिक, जो महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक समृद्ध परंपरा होने का दावा करता है, महिलाओं की सुरक्षा के लिए म वास्ताव में पूरा प्रयास कर रहे हैं ? अजीब विडंबना है कि जिस वक्त राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा कहती हैं कि महिलाओं को ..सेक्सी.. कहे जाने को ‘ऑफेंसिव’ नहीं माना जाना चाहिए, लगभग उसी वक्त राजधानी दिल्लीं से सटे नोएडा में 17 वर्षीय छात्रा के सात पांच लड़के सामूहिक बलात्कार करते हैं। और ये जघन्य अपराध मेट्रो शहरों में महिलाओं को मिली झूठी सुरक्षा और आजादी के भ्रम का उपहास उड़ाता है। इसने एक राष्ट्रव्यापी बहस को जन्म दिया कि क्या  भारत में महिलाएं वास्ताव में सुरक्षित, स्वतंत्र हैं और क्या वास्त्व में उन्हें महिला होने का सम्मान प्राप्त  होता है?

उत्तर प्रदेश जोकि देखने में पुरुष वर्चस्व रखने वाला राज्य प्रतीत होता है। हकीकत में आज इस राज्य पर महिला राजनीतिज्ञों की पकड़ काफी मजबूत है। निवर्तमान मुख्य मंत्री मायावती जोकि 2007 में हुए राज्य के पंद्रहवें विधानसभा चुनाव के पश्चात चैथी बार राज्य की मुख्यमंत्री निर्वाचित की गईं थीं, इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। बहुजन समाज पार्टी में महिलाओं की बागडोर जहां मायावती ने संभाल रखी है वहीं कांग्रेस की ओर से भी एक महिला नेत्री प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा रीटा बहुगुणा जोशी ने मोर्चा संभाला हुआ है। भारतीय जनता पार्टी में उत्तर प्रदेश में महिला नेत्रि के रूप में उमा भारती है। सपा तो राजनीति में महिलाओं के वर्चस्व या इनकी अत्यधिक दखलअंदाजी को पसंद नहीं करती। राष्ट्रीय लोकदल भी पुरुष प्रधान राजनैतिक दल है। देश की राजनीति पर भले ही पुरुष समाज का नियंत्रण क्यों न हो परंतु महिलाओं ने भी स्वतंत्रता संग्राम से लेकर अब तक भारतीय राजनीति में अपनी जो जबरदस्त उपस्थिति दर्ज कराई है उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। आज भी देश में महिलाएं महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित करती हुई देखी जा सकती हैं। चाहे वह देश के राष्ट्रपति का पद हो या लोकसभा अध्यक्ष का पद या फिर सत्तारुढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के अध्यक्ष का पद। देश के कई राज्यों के मुख्यंमंत्रियों की बात या राज्यपालों अथवा केंद्र व राज्य सरकार के मंत्रियों के पद। जहां तक उत्तर प्रदेश जैसे देश के विशाल राज्य का प्रश्र है जिसका क्षेत्रफल आज 2 लाख 43 हजार 286 किलोमीटर है, भी महिलाओं की भरपूर राजनैतिक दखलअंदाजी से अछूता नहीं रहा है। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी, इस पंक्ति को देश का बच्चा-बच्चा बड़े ही गौरवपूर्ण तरीके से बखान करता है। झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई सौभाग्यवश इसी विशाल प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र की महिला थीं जिन्होंने अपनी राजनैतिक कुशलता व जुझारूपन के दम पर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। उसके पश्चात श्रीमती इंदिरा गांधी ने स्वतंत्र भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में 14 वर्ष तक देश को मजबूत शासन दिया तथा अपने राजनैतिक कौशल का लोहा देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मनवाया।

अब अगर प्रमुख दलों की तरफ आशावादी नज़रों से देखें तो रीटा जोशी की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी काफी सुदृढ़ है। उनके पिता स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा केंद्रीय मंत्री रहे हैं। उनकी माता कमला बहुगुणा भी सांसद रही हैं। स्वयं रीटा जोशी को दक्षिण एशिया की प्रतिष्ठित महिला का सम्मान संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा दिया जा चुका हैं। जहां तक महिला नेत्री के रूप में अपनी अलग पहचान रखने वाली उमा भारती का प्रश्र है तो वे भी उत्तर प्रदेश में महिलाओं के वर्चस्व की लड़ाई में काफी आगे हैं। राजनैतिक अनुभव की उनके पास भी कोई कमी नहीं है। मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री के पद से लेकर केंद्रीय मंत्री होने तक का शानदार अनुभव उनके पास है। शायद उत्तर प्रदेश आज महिलाओं के राजनैतिक वर्चस्व से अछूता नहीं है । पर महिलाओं से जुड़े अपराध और घरेलू हिंसा के मामले भारत में तेजी से बढ़ रहे हैं। इस बाबत कुछ लोगों का तर्क हो सकता है कि भारत का हाल कई देशों से बेहतर है। लेकिन, सही मायने में यह तर्क गंभीर मुद्दे से निपटने का बेहद भद्दा तरीका है। खासकर जबकि समस्या हमारी अपनी है। हमें इस तरह की घटनाओं को लेकर अब संवेदनशील होने की जरुरत है। हमें ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति अपनानी होगी ताकि हमारी मांएं, बहनें, पत्नियां और बेटियां अपने काम पर बिना रोक टोक जाएं और सुरक्षित घर वापस आएं।

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