Friday, January 27, 2012

मंदी की आहट....!!



       खतरनाक है यह मंदी की आहट....!!

एक साल पहले जो डालर रू 43 के आस पास था वह आज रू 50 के उपर है, जबकि सबसे ज्यादा मंदी का शिकार अमेरिका है भारत नही। इसका अर्थ है कि अमेरिकी कंपनी तो भारत में अच्छा व्यापार कर रहीं हैं। संकट भारतीय कंपनियों पर हैं। यह मंदी भारतीय कंपनियों को निगल रहीं हैं। भारतीय नागरिेक जितना ज्यादा अपने सामानों का इस्तेमाल करेंगें उतना रूपया मजबूत होगा। वित्त मंत्री ने भी इस बात की तस्दीक की है कि उनके पास मंदी से निबटने के सीमित विकल्प हैं। आईएमएफ और संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि दुनिया भर में आर्थिक मंदी धीरे-धीरे पैर पसार रही है। लाचार ये संस्थामएं सभी देशों से गुहार लगा रहे हैं कि मिलकर इस मंदी का मुकाबला करें। पर क्या विकास की पटरी पर दौड़ रहे भारत और चीन इस मंदी का मुकाबला कर पाएंगे? इंडियन इकोनॉमी की दूसरी तिमाही में भारत की घटती विकास दर इसी बात का संकेत है। दूसरी तिमाही में भारत की आर्थिक विकास दर पिछले साल की दूसरी तिमाही (8.4 प्रतिशत) के मुकाबले में गिर कर 6.9 प्रतिशत हो गई। ये लगातार आठवीं तिमाही है जब भारत के सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर आठ प्रतिशत से नीचे रही। इससे पिछली तिमाही में विकास दर 7.7 प्रतिशत थी। अर्थशास्त्री राधिका राव का भी कहना है कि 2009 में दूसरी तिमाही की विकास दर से लेकर अब तक की सबसे कम विकास दर है और आगे के लिए आसार अच्छे नहीं हैं। कमरतोड़ महंगाई, रुक-रुक कर हो रहे सुधार, बढ़ी हुई ब्याज दरें और नकारात्मक अंतरराष्ट्रीय आर्थिक माहौल से आसार अच्छे नहीं दिख रहे हैं। आर्थिक संकट के चलते चीन के मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में तीन साल में पहली बार गिरावट आई है। चीन में परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) अक्तूबर के 50.4 से घटकर अब 49 पर आ गया है। पीएमआई से मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की गतिविधियों का आकलन किया जाता है। चीन के प्रॉपर्टी बाजार में भी फिलहाल मंदी का दौर है। यूरो जोन की खस्ताहाल इकोनॉमी ने संकट और बढ़ा दिया है। 2008-09 की आर्थिक मंदी के बाद कई समस्याएं अनसुलझी रहीं। इसके कारण प्रमुख विकसित देशों की आर्थिक हालत खस्ता है। विकसित देशों ने ऐसे कदम उठाए, जिससे संकट और गहरा गया। अमेरिका और यूरोप के संकट के असर से विकासशील देशों में भी विकास की रफ्तार कुंद पड़ गई।

सरकार यह दावा कर रही है कि खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश आने से रोजगार सृजन होगा। पर जिसे थोड़ी सी भी दूसरे देशों में खुदरा क्षेत्र में बड़े कारपोरेट घरानों के आने के असर के बारे में पता होगा वह यह बता सकता है कि यह दावा खोखला है। हकीकत तो यह है कि खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के आने से रोजगार सृजन तो कम होगा लेकिन बेरोजगारी और ज्यादा बढ़ेगी। राजनीति, अर्थनीति और संस्कृति को कारपोरेट हितों के लिए निर्देशित और नियंत्रित करने की गति द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद काफी तेज हो गई। सोवियत रूस और अमेरिका के बीच शीतयुद्ध के कारण इसमें जो थोड़ी-बहुत शिथिलता आई थी, वह सोवियत रूस के विखंडन के बाद दूर हो गई। एक ध्रुवीय दुनिया का दंभ पालने वाले अमेरिका ने बेरोक-टोक अपनी कारपोरेट हितैषी नीतियों को दुनिया पर थोपना शुरू किया। लेकिन यह प्रक्रिया अब अपने ही बोझ के कारण बिखर रही है। एस. गुरुमुर्ति जैसे लोगों ने पश्चिमी अर्थशास्त्र की संकल्पनाओं की असफलता और असमर्थता को चिन्हित किया है। उनका कहना है कि हमें अपनी आर्थिक सोच में मूलभूत बदलाव लाने की जरूरत है। 500 वर्षों से दुनिया में जिस आर्थिक व्यवस्था का बोलबाला रहा है, उसे बदलने के लिए भारतीय चिंतन की रोशनी में अर्थनीति, राजनीति और समाजनीति के पुनर्गठन पर बल दिया जाना चाहिए। भारतीय जीवन दर्शन, जीवन लक्ष्य, जीवन मूल्य और जीवन आदर्श के अनुरूप जीवनशैली अपनानी होगी। इसके लिए अनुकूल राजनीति और अर्थनीति को परिभाषित करने और उसे साकार करने की जरूरत है। पिछले लगभग 100 वर्षों से केन्द्रीयकरण, एकरूपीकरण, बाजारीकरण और अंधाधुंध वैश्वीकरण को ही सभी समस्याओं का रामबाण इलाज माने जाने की मानसिकता से हटकर विकेन्द्रीकरण, विविधिकरण, स्थानिकीकरण और बाजार मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ने से ही आज की अपसंस्कृति की सुनामी से बचा जा सकेगा। समता और एकात्मता के अधिष्ठान पर देशी सोच और विकेन्द्रीकरण को आधार बनाकर आर्थिक, राजनैतिक व्यवस्था का पुनर्गठन ही आज की विषम परिस्थितियों से पार पाने का रास्ता होगा।

जिस यूरोपिय देशों के मॉडल को हम वर्तमान में अपनाये हुये हैं उनका हाल कुछ यूॅ है। पहले से ही ऋण संकट से जूझ रहे यूरो जोन देशों के लिए बुरी खबर अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर ने यूरोप की मजबूत अर्थव्यवस्था माने जाने वाले फ्रांस की ऋण साख घटा कर दी है। रेटिंग एजेंसी ने फ्रांस के अलावा 8 और देशों की ऋण साख घटाई है। इनमें ऑस्ट्रिया, स्लोवोनिया, स्लोवाकिया, स्पेन, मालटा, इटली, साइप्रस और पुर्तगाल शामिल है। हालांकि जर्मनी की ऋण साख स्थिर बनी हुई है। देशों की ऋण साख घटने से एक बार फिर से मंदी लौटने के संकेत दिख रहे हैं। फ्रांस के वित्त मंत्री फ्रांस्वा बारवांग ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड ऐंड पूअर ने उनके देश की रेटिंग ट्रिपल ए से नीचे कर दी है। उन्होंने कहा कि ये अच्छी खबर नहीं है लेकिन ये प्रलय की स्थिति भी नहीं है। इटली पर गौर करें तो यह कर्ज लेने के मामले में दूसरा सबसे बड़ा यूरो देश है। ना ही यह देश सरकारी खर्चों को कम करके आर्थिक व्यवस्था को मजबूत करने की किसी योजना पर काम कर रहा है। इसलिए इस देश को ए रेटिंग देना ही सही है। यूरो जोन के देशों में आई आर्थिक समस्या के बाद स्पेन, आयरलैंड, ग्रीस, पुर्तगाल और सायप्रस जैसे देशों की क्रेडिट रेटिंग फिसली थीं। अब इटली भी इन्हीं देशों की कतार में खड़ा हो गया है। एजेंसी का ऑकलन है कि उन्होंने इस रेटिंग का आधार देश की मौजूदा आर्थिक स्थिति को बनाया है लेकिन इसके साथ इस बात पर भी ध्यान दिया है कि वर्तमान आर्थिक समस्या से वह देश कैसे निपट रहा है। भारत, मलयेशिया और जापान सहित कई अन्य देशों की भी क्रेडिट रेटिंग घटायी जा सकती है। ये देश 2008 की आर्थिक मंदी के प्रभावों से अभी तक पूरी तरह नहीं उबर सके हैं। एशिया प्रशांत क्षेत्र पर रिपोर्ट के अनुसार जापान, भारत, मलयेशिया, ताइवान और न्यूजीलैंड की सरकारों की वित्तीय हालत पतली हुई है। इन देशों की वित्तीय क्षमता 2008 के पहले के स्तर से भी नीचे आ गई है। इस एजेंसी ने जब अमरीका की क्रेडिट रेटिंग घटा दी थी तब दुनिया भर के शेयर बाजारों में भारी गिरावट दर्ज की गई थी। गॉधी जी पश्चिम के इस मॉडल को असफल माना करते थे। समझ नही आता प्रधानमंत्री विकास के लिए पाश्चात्य के असफल मॉडल को क्यों अपना रहें है ? विश्व के प्रमुख शिक्षण संस्थान कैम्ब्रिज, आक्सफोर्ड, बोस्टध्ध्,हैं वह सभी मंदी के शिकार है ? इन संस्थानो से शिक्षित छात्रों ने बड़े बड़े पैकेज लेकर बड़े बडे बैंको और कंपनियों को डूबा दिया। पूरा विश्व मंदी का शिकार हो गया। जब यह अर्थव्यवस्थाए डूब रहीं थी तब ये विशेषज्ञ क्या झक मार रहे थे ? पता नही हम लोग क्यों इन लोगों को अनावश्यक सम्मान देते हैं। ये लोग सिखाते है कि अगर आपके पास 50 रू है तो 500 रू का कर्ज लेकर ऐश से जीओ। भारतीय संस्कृति कहती है कि कुछ हिस्सा जोड़कर रखना चाहिए। प्रतिकूल समय में काम आयेगा। अब मंदी से लुटे पिटे देश भारत के लोगो के उसी जुड़े हिस्से को लूटने आ रहे है। टाई पहनकर लोगों को टोपी पहनाने वाले इन विशेषज्ञों से बेहतर कंपनी तो दाढी वाले बाबा ने चलाकर दिखा दी।

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