Saturday, January 28, 2012

Honour Killings



सभ्यता ओढ़े समाज का कड़वा सच.....?


बाधाए कभी सहानुभूति पाने का माध्यम बनती हैं एवं कभी नयी शुरूआत का आधार। सहनशीलता भारत की पहचान रही है और यही विलुप्त होती जा रही है। सदन में ही जब सांसद एवं विधायक तक आक्रामकता प्रदर्शित कर रहें है तो बाकी का तो कहना ही क्या। आक्रामकता ने आजकल एक नया शब्द आनर किलिंग पैदा किया है। पाशविकता की हद पार करते कई प्रकरण लगातार सामने आ रहे हैं। मथुरा के गॉव मेहराना के हत्याकॉड में हाल ही में 16 नव0 2011 को अदालत ने 8 लोगों को फॉसी की सजा सुनायी है। 27 लोगों को अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनायी है। माननीय सुप्रीम कोर्ट पहले ही ऑनर किलिंग को ‘विरल से विरलतम’ की श्रेणीं में रख चुका है। पूर्व में खुद को कानून से उपर समझ रही खाप पंचायतो की सीमाएं भी अदालत ने तय कर दी थी। हरियाणा के कैथल में स्वगोत्र विवाह पर विरोध जताते हुये खाप पंचायत ने प्रेमी युगल मनोज एवं बबली को मौत के घाट उतरवा दिया था। यह पूरी कार्यवाही भी सिर्फ वर्चस्व दिखाने के लिए की गयी थी। मामला अदालत के संज्ञान में आने पर अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश वाणी गोपाल शर्मा ने पॅाचो पंचो को मौत की सजा एवं बाकी को कारावास की सजा सुनायी थी। कुछ फैसले देश के सामाजिक भविष्य की रूपरेखा तय करते हैं। शाहबानों प्रकरण भी एक ऐसा ही संजीदा मामला था। जाति, धर्म, और समाज के स्वयंभू ठेकेदारों पर अदालती नकेल एक ताज़ा हवा के झोंके की तरह ताजगी पैदा करते है। स्थानीय एवं सामाजिक संगठन अक्सर खुद को कानून से उपर समझकर भारतीय संविधान को सीधी चुनौती देते हैं। स्थानीय संगठनो के दिल में जब कानून एवं व्यवस्था के प्रति सम्मान नही रह जाता है, तभी स्थिति जटिल से जटिलतम होती हैं।

स्वगोत्र विवाह पर व्यापक जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। भारतीय संस्कृति के दृष्टिकोण से देंखें तो सामाजिक ताना बाना काफी बिगड चुका हैं। स्वच्छंदता के नाम पर की जाने वाली बहुत सी गतिविधियॉ सही नही है किन्तु किसी के व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप करना गलत होता है। व्यक्ति की अति महत्वाकॉक्षाएं सबसे पहले उसको ही निशाना बनाती है। मॉ बाप भी बच्चों के क्रियाकलापों को बढ़ा चढ़ा कर पेश करते हैं। वे बच्चों को उन लोगों को अपना आदर्श बनाने के लिए कहते हैं जो अपने क्षेत्रों में तो सफल होतें हैं किन्तु आचरण से अनुकरणीय नही होते। शायद यहीं से सामाजिक ताना बाना बिग़डता चला जाता है। तस्वीर का उजला चेहरा संपूर्ण तस्वीर को प्रदर्शित नही करता। बच्चे भी आचरण को प्राथमिकता न मानकर नौकरी एवं पैसे को सर्वस्व मान लेते हैं। समाज एक बड़ा वर्ग अभी भीतर से आधुनिक नही हुआ हैं किन्तु आधुनिकता का कृत्रिम उपरी आवरण उसने ओढ़ रखा है। ब्रांडेड कपड़े पहनना, पिज्जा खाना, मोबाइल पर लंबी बातें करना, सड़को पर कहीं भी गुटखे से रंगोली बना देना, वाहन को अनावश्यक रूप से तेज चलाना, स्टेटस के लिए गर्ल फ्रेंड/ब्याय फ्रेंड रखना आदि आधुनिकता नही है। वास्तविक वैचारिक आधुनिकता एवं आधुनिकता के आवरण के बीच में जो ‘ब्रिजिंग गैप‘ है वही शायद आनर किलिंग की घटनाओं में आयी अचानक तेजी के लिए जिम्मेदार है। यह एक संवेदनशील मुद्दा है। अप्रैल से जून के मध्य 19 घटनाए हुयी। मॉ द्वारा बेटी को, पिता द्वारा पुत्री, भाई द्वारा बहन का कत्ल करना यह दर्शाता है कि कत्ल के समय भावनाओं का आवेग क्या रहा होगा। रिश्तों का खून करना आसान नही होता। समस्या की जड़ सिर्फ आनर किलिंग नही है बल्कि लव बनाम अरेंज मैरिज भी है। वास्तविक समस्याओं को दूर करने में नाकाम व्यक्ति अपने करीबी लोंगों की ज़िदगी एवं सोंच पर अपना अधिकार समझने लगता है। वह उनको अपने हिसाब से चलाना चाहता है। बाढ़ या सूखे पर उसका नियंत्रण नही है किन्तु बहन पर तो है। डीजल की कीमते कम करवा नही सकते, टूटी सड़के बनवा नही सकते किन्तु बेटी को तो मनचाही जगह ब्याह सकते हैं..? जब यहॉ भी उसे असफलता मिलती है तो वह बौखला जाता है। फिर स्वयं की सारी असफलताओं का ठीकरा प्रेमी युगल पर पड़ता है। लगता है जैसे सारी समस्याए प्रेमियों के कारण ही हो रही थी। लोग समाज के उकसावे एवं दबाव में आकर वारदात तो कर देते हैं किन्तु खुमारी उतरने पर जो आत्मग्लानि होती है वह भीतर तक झकझोर देती है।

कहा जाता है कि सबसे बुरा दिखता आदमी सबसे अच्छी सलाह देता है। स्थानीय संगठन/खाप पंचायत, यदि सकारात्मक दृष्टिकोण अपनायें तो इनका प्रयोग क्षेत्र के विकास एवं स्थानीय स्तर के छोटे दीवानी मुकदमों को निपटाने के लिए लोक अदालत की तरह किया जा सकता है। विचारयोग्य है कि, यघपि खापों के कार्य करने के तरीके पर एतराज किया जा सकता है किंतु स्वगोत्र विवाह संबंधी उनकी मॉग को अनदेखा भी नही किया जाना चाहिए। हिंदू धर्मग्रंथों में स्वगोत्र विवाह को वर्जित माना गया है। याज्ञवल्य स्मृति 1.53 में स्वगोत्र विवाह को गुरू की पत्नी से व्याभिचार तुल्य कहा गया है। इसकं अतिरिक्त आपस्तंब धर्मसूत्र 2.11.15, विष्णु धर्मसूत्र 24.9-10, वशिष्ठ धर्मसूत्र 8.1, बौधायन धर्मसूत्र 2.1.38, गौतम धर्मसूत्र 4.2,23.12 आदि अनेको हिंदू ग्रंथों में स्वगोत्र विवाह को वर्जित माना गया है। कुछ स्मृतियों में इनकी संतानो को चांडाल तक कहा गया है। सामाजिक रीति-रिवाज एवं कानून के मध्य के इस टकराव का हल होना ही चाहिए । आज के हाईटेक युग में विचार ज़बरदस्ती किसी पर थोपे नही जा सकते।जो विचार प्रभावशाली होंगें वह स्वयं लोगों को प्रभावित कर देंगें। धार्मिक परम्पराओं की अधिकतर बातें वैज्ञानिक आधार वाली हैं किन्तु उनको ठीक ढंग से लोगों के समक्ष रखा नही जाता है। फलस्वरूप युवा वर्ग उन बातों को कुतर्कसंगत मानकर बड़ो की बाते ही सुनना बंद कर देता है। बुजु़र्गाें का काम युवाओं तक सिर्फ वास्तविक दृष्टिकोण पहुॅचाना होना चाहिए। फैसला स्वयं उन्हे करने दीजिए। मनुष्य स्वभाव है कि वह समझाने से नही समझता है, ठोकर खाने के बाद ही संभलता है ? समय के साथ साथ प्राथमिकताए बदलती हैं। पुरानी बाते गलत नही होती किन्तु समय, काल एवं परिस्थिति के अनुरूप बदलाव न करने से उसकी सार्थकता जरूर कम लगने लगती है। कंप्यूटर साफटवेयर की तरह समय समय पर विचारों का अपग्रेडेशन भी करते रहना चाहिए। इस संदर्भ में कानून से सुधार की ज्यादा उम्मीद करना बेमानी होगा। कानून का अर्थ है विचारों को उपर से थोपा जाना। ये तो आखिरी चारा होता है। समाज रूपी संस्था को चलाने के लिए कानून होते हैं, कानून को चलाने के लिए सामाजिक संस्थाए नहीं हैं...! भारत में न्याायधीश तो मैरिज एक्ट के अनुसार ही निर्णय दे सकते हैं किन्तु कभी कभी स्वविवेक से तर्कपूर्ण निर्णयों की आवश्यकता होती है। न्याायधीशों को कानून के ज्ञान के साथ धार्मिक ज्ञान भी होना चाहिए। सिर्फ धार्मिक ज्ञान होने से कोई मजहबी नही हो जाता। एक बड़ी ही विचित्र स्थिति है कि न्यायाधीश यदि धार्मिक ज्ञान की बात भी करता है तो वह सांप्रदायिक मान लिया जाता है। ब्रिटिश एवं अंग्रेजी कानूनों में वहॉ के मजहब का विशेष महत्व है। वहॉ न्यायाधीशों के लिए व्यापक धार्मिक ज्ञान होना आवश्यक शर्त है। ब्रिटेन में राज्य प्रमुख/ क्राउन वहॉ के मजहब का आधिकारिक संरक्षक होता है। भारत का राष्टपति हिंदू धर्म का आधिकारिक संरक्षक नही है। वह अल्पसंख्यको के मजहबो का संरक्षक जरूर बनाया गया है। भारतीय संविधान, इंडिया एक्ट 1935 का संशोधित रूप जरूर है किन्तु इस महत्वपूर्ण प्रावधान को उसमें से हटा दिया गया था। सोवियत संघ का विघटन इस बात का साक्षात प्रमाण है कि किस प्रकार आंतरिक गतिरोध महाशक्ति को भी मामूली शक्ति बना सकते हैं। ब्रिटेन एवं रूस के लोग भारत के सांस्कृतिक ढ़ॉचे को बहुत ही गंभीरता से लेते हैं। ढेरों भिन्नताओं के बावजूद भारत का एकजुट रहना विदेशी सभ्यताओं के लिए आज भी मिसाल है।



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